आज भारतीय समकालीन कला में जब वुड प्रिंट तकनिकी की चर्चा करते हैं तो पद्मश्री श्याम शर्मा का नाम सबसे प्रमुखता से लिया जाता है l वे इस विधा में मात्र सबसे ज्यादा काम करनेवाले कलाकार ही नहीं हैं बल्कि नित नए प्रयोग करनेवाले कलाकार भी रहे हैं l बिहार की राजधानी पटना के सभी कला प्रेमी और प्रबुद्धजन उन्हें बहुमुखी प्रतिभा के धनी मानते हैं l छापाकला की चर्चित लिनोकट,वुड प्रिंट लिथोग्राफी या एचिंग हो अथवा पेंटिंग ,मूर्तिशिल्प ,म्यूरल या इंस्टालेशन जैसी विधाएँ ही क्यों न हो सभी में अपनी प्रयोगधर्मिता के कारण वे अपने समकालीनों से बहुत आगे रहे हैं l यहाँ तक की नाटक और साहित्य जैसी विधाएँ भी उनसे अछूती नहीं रही हैं l आज वे कवि, कथाकार और कला समीक्षक के रूप में भी जाने जाते हैं l कला और साहित्य पर उनकी दर्जनों पुस्तके छप चुकी हैं l
शुरुआत में पारम्परिक तरीके से लीनोकट, वुडप्रिंट ,लिथोग्राफी और एचिंग में काम करने के बाद इन्होने वुडकट को ही अपना प्रिय माध्यम बना लिया l वुडकट में प्लाईवुड के टेक्सचर का आनंद लिया फिर पेड़ के तने को काटकर अमूर्त रूपाकारों को ढूंढने की कोशिश की कभी मिटटी के ब्लाक बनाकर उसके प्रिंट लिए जिसमे उभरे दरारों का बेहतरीन इस्तेमाल किया l हिन्दू दर्शन और बौद्ध दर्शन से प्रभावित प्रकृति प्रेमी श्याम शर्मा जी को अमूर्तन ने भी खूब आकर्षित किया l कबीर का प्रभाव भी इनकी कलाकृतियों पर दिखाई देता है l कई वर्षों से मिटटी के ब्लाक बनाकर मिक्स मिडिया में काम कर रहे हैं जिसे वे स्वदेशी प्रक्रिया कहते हैं l मिटटी में आये क्रैक या दरारों को वे भारतीय गरीबी से जोड़कर देखते हैं l इन्होने अंडरग्राउंड मूवमेंट इन नेचर ,अर्थ एंड स्पेस ,फूलों का जन्म तथा व्यंगात्मक रूपाकारों वाले कई सीरीज पर वुड प्रिंट शैली में काम किया है l देश के अधिकतर छापा कलाकार श्वेत श्याम रंग में प्रिंट निकालते हैं जबकि श्याम शर्मा ने अपने प्रिंट में रंगों का खुलकर प्रयोग किया उनकी अक्सर कोशिश रहती हैं कि तकनिकी बंधनों से मुक्ति मिले l मूर्त हो या अमूर्त इन्होने चाहे जिस माध्यम या शैली में भी काम किया इनकी कलाकृतियों में एक संगीतमय आनंद का अनुभव होता है l मूर्त रूपाकारों में खासकर लोकतत्वों ने इन्हें अपनी ओर ज्यादा आकर्षित किया जिसका प्रभाव इनकी अधिकतर कलाकृतियों में दिखता है l रंगों के प्रति विशेष आकर्षण के वावजूद इनकी कलाकृतियों में भी काले रंगों का कुछ ज्यादा प्रयोग दिखता है l कभी घिसकर ,कभी स्टेंसिल के सहारे तो कभी जलाकर अपनी कलाकृतियों में नवीनता लाने की कोशिस करते रहते हैं l अपने निवास के ऊपरी मंजिल स्थित स्टूडियो में जब वे काम करते करते थक जाते हैं तो पढ़ने लगते हैं l
सन 1941 में हमारे गुरु श्याम शर्मा जी का जन्म मथुरा शहर में हुआ l बचपन बरेली में बीता और कला की शिक्षा लखनऊ आर्ट कालेज में हुई पर इनका कर्म क्षेत्र बिहार रहा l कृष्ण की नगरी गोवर्धन में इनका बचपन बीता वहां के मंदिरों में नाथद्वारा के चित्रों को देखकर कला के प्रति आकर्षण पैदा हुआ मगर छापाकला के प्रति इनका झुकाव बरेली से शुरू हुआ जहाँ इनकी जवानी शुरू हुई l बरेली में इनके पिता जी की प्रिंटिंग प्रेस हुआ करती थी स्कूली शिक्षा के बाद वे वही आ गए थे l वही कुछ कलाकारों से मुख से लखनऊ आर्ट कालेज का नाम सुना फिर लखनऊ आर्ट कॉलेज में नामांकन करा लिया l कला शिक्षा के दौरान इन्हें सुधीर खास्तगीर, मदनलाल नागर,रणवीर सिंह बिष्ट ,जयकृष्ण अग्रवाल और दिनकर कौशिक जैसे महान कलागुरूओं का सानिध्य मिला l लखनऊ आर्ट कालेज से शिक्षा ग्रहण करने के बाद श्याम शर्मा 1966 में पटना आ गए l पटना आर्ट कालेज में छापाकला के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर की नौकरी से शुरुआत कर हेड आफ डिपार्टमेंट और प्रिंसिपल सभी पदों पर इन्होने सक्रीय भूमिका निभाई l इस कालेज में दो शिक्षक लखनऊ से पढ़कर आये बटेश्वर नाथ श्रीवास्तव और श्याम शर्मा l शर्मा जी ने पटना आर्ट कालेज में छापाकला विभाग की शुरुआत की और वुड प्रिंट को अपना शुरूआती कला माध्यम बनाया l इनकी सक्रियता के कारण ही बिहार में छापाकला के कुछ अच्छे कलाकार उभरे जिनमे नवीन प्रभाकर, राखी और आलोक प्रभाकर प्रमुख हैं l श्याम शर्मा बिहार में ही बस गए पर अपनी असीम ऊर्जा के कारण सदैव रचनात्मक रहे और आज भी हैं l आज भी अपने गुरुओं का वे बहुत सम्मान करते हैं और उनके शिष्य भी उनका दिल से सम्मान करते हैं l आज उनके कई शिष्य अंतर्राष्ट्रीय कला जगत में चर्चित नाम हैं l कला शिक्षण के बारे में इनका मानना है की कला नितांत व्यक्तिगत साधना है यही वजह है की पटना आर्ट कालेज की अलग पहचान है यहाँ से उभरे कलाकारों के ऊपर किसी शिक्षक या वरिष्ठ कलाकारों की छाप नहीं होती l श्याम शर्मा और बीरेश्वर भटाचार्य ने 1966 में ही रणजीत सिन्हां के सहयोग से एक संस्था बनायीं थी त्रिकोण l इस संस्था द्वारा बिहार से बाहर लखनऊ ,शांतिनिकेतन और कानपूर में प्रदर्शनी आयोजित की गयी थी lपटना आर्ट कालेज के हम सभी कलाकारों ने उन्हें प्रतिदिन अपने स्टूडियो में काम करते देखा है l आज उम्र के इस पड़ाव पर भी अन्य युवा कलाकारों से ज्यादा सक्रीय रहते हैं l ईश्वर ने उन्हें सहयोग करनेवाला कलाप्रेमी परिवार भी दिया है l इनकी पत्नी नवनीत शर्मा रंगमंच की चर्चित अभिनेत्री हैं बेटा वास्तुशिल्पी और अभिनेता है दो बेटियां हैं दोनों कलाकार l पटना के अधिकतर सांस्कृतिक गतिविधियों में इनका परिवार उपस्थित होता ही है l
तकरीबन सौ से ज्यादा एकल और समूह प्रदर्शनियों में इनका काम प्रदर्शित हुआ है l 1988 मे इन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार मिला l 2020 में भारत सरकार द्वारा इन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया l हम सब कलाकार इस बात से ख़ुश हैं कि भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान से नवाजे जाने के बाद उन्हें देश के हर कोने से बुलाया जा रहा हैं और सम्मानित भी किया जा रहा हैं l इससे पूर्व राष्ट्रीय ललित कला अकादमी के जेनरल काउन्सिल के सदस्य और राष्ट्रीय आधुनिक कला दीर्घा दिल्ली के सलाहकार समिति के चेयरमैन भी रहे l फ़िनलैंड ,नेपाल ,कैलिफोर्निया और युगोस्लाविया जैसे देशों में कला यात्रायें की और अपने काम प्रदर्शित किये l अमेरिका ,कैरो मेसीडोनिया ,जापान ,नीदरलैंड ,ओमान ,टर्की जैसे देशों में आयोजित बिनाले -त्रिनाले कला प्रदर्शनियों में इनकी भागीदारी रही है l